सिन्धु बेसिन में बहुउदृदेशीय-नदी घाटी परियोजना के विकास का इतिहास
भारतीय उप-महाद्वीप का उत्तर –पश्चिम क्षेत्र सिन्धु की भूमि है। वास्तव में भारत को इस नदी से अपना नाम प्राप्त हुआ है। पश्चिम से सिंधु नदी की प्रमुख सहायक नदियां काबुल तथा कुरेम नदियां हैं, पूर्व से पांच मुख्य सहायक नदियां-झेलम, चिनाव, रावी, ब्यास तथा
सतलुज हैं। सिंधु प्रणाली की सभी प्रमुख नदियां बारहमासी हैं। इसकी सहायक नदियां मानसून वर्षा पर अधिक निर्भर रहती हैं। सिंधु बेसिन का अधिकतर भाग भारत तथा पाकिस्तान में पड़ता है और इस क्षेत्र का केवल लगभग(13%) कुल जलग्रहण तिब्बत तथा अफगानिस्तान में है। भारत
में सिन्धु घाटी , हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान राज्यों और यू.टी.जम्मू-कश्मीर में स्थित है।
सिंधु जल सन्धि 1960
देश के विभाजन तथा दो स्वतन्त्र राजनैतिक सत्ताओं भारत तथा पाकिस्तान का उद्दभव होने से सिंधु जल के बंटवारे का विवाद हुआ तथा यह एक अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दा बन गया । विश्व बैंक के तत्वाधान में भारत सरकारों के बीच लगभग 8 वर्षों तक हुए विचार विमर्श तथा बातचीत
के परिणामस्वरूप सिंधु जल सन्धि हुई। इस सन्धि के अन्तर्गत तीन पूर्वी नदियों
(रावी, ब्यास तथा सतलुज) का जल केवल भारत के उपयोग के लिए होगा तथा तीन पश्चिम नदियों (इंडस, झेलम तथा चिनाव) का जल केवल पाकिस्तान के उपयोग के लिए होगा।
स्वतन्त्रता के बाद परियोजनाओं का विकास
भाखड़ा –नंगल बांध परियोजना को 1948 में इतने सुनियोजित तरीके से शुरू किया गया कि सिंचाई तथा विद्युत के बढे हुए लाभ 1963 में भाखड़ा पर मुख्य बांध के पूर्ण होने से काफी पहले ही प्राप्त होने शुरू हो जाएं। 1954 में खेतों के लिए सिंचाई चैनल खोल दिए गए थे तथा
भाखड़ा नंगल ग्रिड पर गंगूवाल विद्युत संयंत्र की प्रथम यूनिट ने 1955 में विद्युत उत्पादन करना प्रारम्भ कर दिया था।
तीन नदियों का जल, जो सिन्धु जल सन्धि के पश्चात भारत के हिस्से में आया, का समुपयोजन करने के लिए
मास्टर प्लान तैयार की गई । सिंचाई एवं विद्युत उत्वादन के लिए सतलुज नदी के जल को नियन्त्रित करते हुए सतलुज नदी परभाखड़ा बांध का निर्माण किया गया। अगली नदी
ब्यास नदी थी जिसे ब्यास परियोजना के माध्यम से और इसके ठीक बाद रावी को थीन बांध के माध्यम से बांध पाना था।
ब्यास परियोजना
यूनिट-I ब्यास सतलुज लिंक आवश्यक रूप से एक विद्युत परियोजना हैं तथा यह पंडोह में 4711 मिलियन क्यूमेक (3.82 एम.ए.एफ.) ब्यास जल को 1000 फीट नीचे सतलुज में अपवर्तित करती है। इस बिंदु पर देहर विद्युत गृह की अधिष्ठापित क्षमता 990 मेगावाट है, इसके बाद टेल
रेस जल सतलुज से बहता हुआ भाखड़ा के गोबिन्दसागर जलशाय में एकत्रित हो जाता है। पंडोह से देहर तक अपवर्तन 38 कि.मी. लम्बी जल संवाहक प्रणाली द्वारा होता है जिसमें संयुक्त रूप से 25 कि.मी. लम्बी एक खुली चैनल तथा दो सुरंगें सम्मिलित हैं। ब्यास तथा सतलुज का कुल
जलग्रहण क्षेत्र क्रमश: 12560 वर्ग कि.मी. तथा 56860
वर्ग कि.मी. है।
ब्यास परियोजना की यूनिट-II तलवाड़ा के मैदानी भाग में प्रवेश करने से ठीक पहले ब्यास नदी पर पौंग बांध है, जिसका सकल भण्डारण 435 फुट अर्थ कोर ग्रैवल शैल डैम के पीछे 8572 मिलियन क्यूमेक (6.95 एम.ए.एफ.) है। बांध के आधार पर स्थित विद्युत संयंत्र की अधिष्ठापित
क्षमता 360 मेगावाट है।